tag:blogger.com,1999:blog-14168233574387939832024-02-20T11:39:26.341-08:00डॉ.कुमार विश्वासDR.KUMAR VISHWAShttp://www.blogger.com/profile/13308843247531773452noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-1416823357438793983.post-88522822438853828582011-02-10T21:12:00.000-08:002011-02-10T21:12:14.170-08:00डॉ. कुमार विश्वास - हिन्द युग्म के अतिथि कवि<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><table align="center"><tbody>
<tr><td><a href="http://kavita.hindyugm.com/2010/02/varshikotsav-2009-sambhavnacom-release.html"><br />
</a></td><td><br />
</td></tr>
</tbody></table><i><b><a href="http://kavita.hindyugm.com/2007/06/blog-post_6638.html">डॉ. कुमार विश्वास - हिन्द युग्म के अतिथि कवि</a></b></i><h3 class="post-title entry-title"> </h3><strong><span style="color: #006600;">तब तक मुझको जीना होगा</span></strong><br />
<br />
सम्बन्धों को अनुबन्धों को परिभाषाएँ देनी होंगी<br />
होठों के संग नयनों को कुछ भाषाएँ देनी होंगी<br />
हर विवश आँख के आँसू को<br />
यूँ ही हँस हँस पीना होगा<br />
<strong>मै कवि हूँ जब तक पीडा है</strong><br />
<strong>तब तक मुझको जीना होगा</strong><br />
<br />
मनमोहन के आकर्षण मे भूली भटकी राधाऒं की<br />
हर अभिशापित वैदेही को पथ मे मिलती बाधाऒं की<br />
दे प्राण देह का मोह छुडाने वाली हाडा रानी की<br />
मीराऒं की आँखों से झरते गंगाजल से पानी की<br />
मुझको ही कथा सँजोनी है,<br />
मुझको ही व्यथा पिरोनी है<br />
स्मृतियाँ घाव भले ही दें<br />
मुझको उनको सीना होगा<br />
<strong>मै कवि हूँ जब तक पीडा है</strong><br />
<strong>तब तक मुझको जीना होगा</strong><br />
<br />
जो सूरज को पिघलाती है व्याकुल उन साँसों को देखूँ<br />
या सतरंगी परिधानों पर मिटती इन प्यासों को देखूँ<br />
देखूँ आँसू की कीमत पर मुस्कानों के सौदे होते<br />
या फूलों के हित औरों के पथ मे देखूँ काँटे बोते<br />
इन द्रौपदियों के चीरों से<br />
हर क्रौंच-वधिक के तीरों से<br />
सारा जग बच जाएगा पर<br />
छलनी मेरा सीना होगा<br />
<strong>मै कवि हूँ जब तक पीडा है</strong><br />
<strong>तब तक मुझको जीना होगा</strong><br />
<strong><br />
</strong>कलरव ने सूनापन सौंपा मुझको अभाव से भाव मिले<br />
पीडाऒं से मुस्कान मिली हँसते फूलों से घाव मिले<br />
सरिताऒं की मन्थर गति मे मैने आशा का गीत सुना<br />
शैलों पर झरते मेघों में मैने जीवन-संगीत सुना<br />
पीडा की इस मधुशाला में<br />
आँसू की खारी हाला में<br />
तन-मन जो आज डुबो देगा<br />
वह ही युग का मीना होगा<br />
<strong>मै कवि हूँ जब तक पीडा है</strong><br />
<strong>तब तक मुझको जीना होगा</strong><br />
<strong></strong><br />
<strong><span style="color: red;">कवि: डॉ. कुमार विश्वास</span></strong><br />
<strong><span style="color: red;"></span></strong><span style="color: red;"><span style="color: #cc0000;"><strong><span style="color: #006600;"><br />
</span></strong></span></span><span style="color: #000066;"></span></div>DR.KUMAR VISHWAShttp://www.blogger.com/profile/13308843247531773452noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-1416823357438793983.post-73965819129675059972011-02-10T21:03:00.000-08:002011-02-10T21:03:15.295-08:00कुमार के जन्मदिन पर विशेष<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3t3v_e1mbY8mZPcL6gH-0sLGjgD3FXQko92GQhrufn3s0SXkYXPiGfWwSfTEXeNN5QIjw9trXr5sB09join9RW2nfPb6Gjrt7f3wTvFI099lCWRx31avzeYEYya4Sh3pbvH708QWyqfmS/s1600-h/kumar.JPG" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3t3v_e1mbY8mZPcL6gH-0sLGjgD3FXQko92GQhrufn3s0SXkYXPiGfWwSfTEXeNN5QIjw9trXr5sB09join9RW2nfPb6Gjrt7f3wTvFI099lCWRx31avzeYEYya4Sh3pbvH708QWyqfmS/s400/kumar.JPG" width="353" /></a></div><br />
<div style="text-align: center;"><i><span class="Apple-style-span" style="font-style: normal;"><i><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><span class="Apple-style-span" style="background-color: yellow;"><span class="Apple-style-span" style="color: magenta;">डाँ कुमार विश्वास</span></span></span></i></span></i><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><span class="Apple-style-span" style="background-color: magenta;"><span class="Apple-style-span" style="color: yellow;">जन्मदिन १०.०२.१९७०</span></span></span></b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span></b></span></div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><b>कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><b>मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><b>मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><b>ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है</b></span></div><br />
<div style="text-align: center;">__________________________________________________________________________________</div><div style="text-align: justify;"><i>१० फरवरी (बसंत-पंचमी ) को पिलखुवा (गाज़ियाबाद) में जन्में डाँ कुमार विश्वास का नाम हिन्दी कविता-प्रेमियों के लिए परिचय का मोहताज नहीं है। कवि-सम्मेलन के मंचों पर उनकी लोकप्रियता का कारण उनकी वाक्-पटुता, विद्वता, और समय-अवसर पर अपनी विराट स्मरण-शक्ति का प्रयोग है। श्रोताओं को अपने जादुई सम्मोहन में लेने का उनका अदभुत कौशल, उन्हें समकालीन हिन्दी कवि-सम्मेलनों का सबसे दुलारा कवि बनाता है। आई.आई.टी , आई.आई.एम या कॉरपरेट-जगत के अधिक सचेत श्रोता हों, या कोटा-मेले के बेतरतीब फैले दो लाख के जन समूह का विस्तार हो , प्रत्येक मंच को अपने संचालन में डॉ कुमार विश्वास इस तरह लयबद्ध कर देते हैं कि पूरा समारोह अपनी संपूर्णता को जीने लगता है। स्व० धर्मवीर भारती ने उन्हें हिन्दी की युवतम पीढ़ी का सर्वाधिक संभावनाशील गीतकार कहा था। महाकवि नीरज जी उनके संचालन को निशा नियामक कहते हैं। तो प्रसिद्ध हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा के अनुसार वे इस पीढ़ी के एकमात्र ISO 2006 कवि हैं। हास्यरसावतार लालू यादव, अभिनेता राजबब्बर, गोविन्दा, खिलाड़ी राहुल द्रविड़, मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, नीतिश कुमार, टेली न्यूज के चेहरो, उद्योगपतियों से लेकर भोपाल स्टेशन के कुलियों और मंदसौर मध्यप्रदेश की अनाज मंडी के पल्लेदारों तक फैला उनका प्रशंसक परिवार ही डॉ कुमार विश्वास की सचेत प्रज्ञा का परिचायक है। यह समूह डॉ कुमार विश्वास के देश दुनियां में फैले उन लाखों दीवानों का है जिन्हें उन्होंने बार-बार अपनी क्षमताओं से सम्मोहित किया है और जिनके दिलों की दास्तां को अपनी मीठी-आवाज , खास-अदायगी और खूबसूरत-लफ़्जों में बयान किया है</i>।</div><b><span class="Apple-style-span" style="background-color: lime;">http://www.kumarvishwas.com/ से साभार </span></b><br />
__________________________________________________________________________________<br />
<div style="text-align: justify;">आज १० फरबरी है और इसे मैं कुमार विश्वास जयन्ती के रूप में याद करता हूँ. डा. कुमार विश्वास जिन्हें मैं इसलिए बहुत पसंद करता हू कि उन्होंने हिन्दी कवि सम्मलेन के मंचो से विदा होते हुए गीतों को नया जीवन दिया. एक समय आ गया था कि गीतकारो को कोई सुनना ही नहीं चाहता था और बड़े नामी गीतकारो को भी केवल नाम के लिए ही बुलाया जाता था. उस समय डा कुमार एक नयी हवा के झोंके की तरह आये तो आते ही छा गए.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">१९९६ में कुमार का पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ जिसके एक हस्ताक्षरित प्रति मेरे पास अभी भी है. उससे कुछ माह पहले ही उनसे ठीक से परिचय हुआ था. मेरी कुछ खराब आदतों में से ये भी है कि मैं पंक्ति, मुक्तक या गीत नहीं याद करता बल्कि किताब याद कर लेता हू और १ महीने में ही मुझे डा. कुमार पूरी तरह से याद हो गए. कवि सम्मेलनों में कुमार से मुलाक़ात होती रहती.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">२००० की गीत चांदनी में कुमार जयपुर आये तो गीत को समर्पित इस अनोखे आयोजन में आगे से पीछे तक कुमार की धूम मची हुई थी. पहले दौर में ही कुमार ने सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया. दूसरे दौर में जब कुमार से एक के बाद दूसरे गीत की मांग होने लगी तो कुमार ने एक ऐसा गीत जो वो कभी भी मंच से नहीं सुनाते थे वो शुरू किया (रूपा रानी बड़े सयानी, मधुरिम वचना भोली- भाली ) तो सुनाते सुनाते कुमार अटक गए, एक दो बार कोशिश की लेकिन फिर उनकी नज़र मेरे ऊपर पडी और मंच से ही बोले शर्मा जी बताना भाई आगे क्या है. मै खडा हुआ और आगे की पंक्तिया शुरू कर दी. इस तरह वो गीत पूरा हुआ. एक दम से मंच और सभी बचे हुए श्रोताओं में हंगामा हो गया. कवि सम्मेलनों के इतिहास में ये पहला मौक़ा होगा जब एक जाना माना कवि सामने बैठे श्रोता से कहे की आगे क्या है बताना. संचालक ने कहा शर्मा जी आप मंच पर आये और जो कुछ सुनना चाहे सबको सुनाये. लेकिन मैंने मना कर दिया. मैंने कहा श्रोता के रूप मे में नंबर १ हूँ कवि के रूप में आख़िरी पायदान पर नहीं बैठूंगा. जिस दिन मेरी कविता में दम होगा मै खुद मंच पे आ जाउंगा. उन्होंने कहा आप इतना तो करो ही कि अपने विजिटिंग कार्ड सारे कवियों को दे दो क्या पता कब किसे जरूरत पड़ जाये. वाद में प्रसिद्द कवयित्री श्रीमती सरिता शर्मा जी ने कहा शर्मा जी आप जैसा एक भी श्रोता मिल जाए तो हम लोगो का जीवन सफल हो जाए.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">इसके बाद अनेक जगह अनेक अवसरों पर डा कुमार को सुनते और मिलते रहे कभी अलीगढ़ कभी गाज़ियाबाद कभी एटा इस बीच मेरा निवास आगरा बना. तभी देखा कि डा कुमार इन्टरनेट पर लोकप्रिय हो गए है उन्हें ऑरकुट पर जोड़ा और जी टॉक और याहू पर भी और बात होने लगी. तभी हमारी आपसी बात चीत को पढके आगरा में उनके एक भगत ने हमें ढूढ़ लिया तो हमने डा कुमार को फ़ोन मिला के उनका परिचय भी कराया और कहा कि भाई इन बच्चो पर क्या जादू कर दिया है. तब तक (२००७ ) उनकी नयी किताब "कोई दीवाना कहता है" भी प्रकाशित हो गई थी उसमे कुछ नए मुक्तक और गीत भी पढ़ने को मिले. फिर हमारा ट्रांसफर जोधपुर हो गया तो २० नबम्बर २००८ को कुमार जोधपुर आये उन्हें किसी कार्यक्रम में आगे जाना था तो दिन भर उनसे मुलाक़ात हुई वो घर भी आये. तब घर वालो से उनका परिचय भी हुआ. मैं नोयडा के एक कार्यक्रम में उनके परिवार से मिल चुका था. </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">मेरे बच्चो के स्कूल में बच्चे डा कुमार की चर्चा करते है तो बेटा और बेटी कहते है वो तो मेरे पापा के दोस्त है तो लडके लडकिया इसे गप्प समझते है. वैसे मेरे बेटे ने ३ साल की उम्र में सबसे पहले जो कविता टाइप चीज याद की वो कुमार का ये मुक्तक था जिसे उन दिनों मे गुनगुनाता रहता था.</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: center;"><b>बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेड़े सह नहीं पाया, </b></div><div style="text-align: center;"><b>हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया. </b></div><div style="text-align: center;"><b>अधूरा अनसुना ही रह गया यूं प्यार का किस्सा, </b></div><div style="text-align: center;"><b>कभी तुम सुन नहीं पाए कभी मैं कह नहीं पाया. </b></div><div style="text-align: center;"><br />
</div>डा. कुमार के कुछ लोकप्रिय मुक्तक यहाँ लिखने से खुद को नहीं रोक पा रहा हू.<br />
<br />
<div style="text-align: center;"><b> </b><span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><b>बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-weight: normal;"><b>मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन</b></span></b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><b>इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><b>एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><b>*****************************</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><b>समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नही सकता</b></span></div><span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Tahoma,Verdana,Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 22px;"><div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-weight: normal;"><b>ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नही सकता</b></span></b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-weight: normal;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-weight: normal;"><b>मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले</b></span></b></span></b><br />
<b>जो मेरा हो नही पाया वो तेरा हो नही सकता</b></div><div><div><div style="margin-bottom: 0.9em; margin-top: 0.5em; text-align: center;"><b>******************************</b><br />
<b>मोहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है</b><br />
<b>कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है </b><br />
<b>यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं</b><br />
<b><span class="Apple-style-span" style="font-weight: normal;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-weight: normal;"><b>जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है</b></span></b></span></b></div><div style="margin-bottom: 0.9em; margin-top: 0.5em; text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-weight: normal;"><b>*********************************</b></span></b></div><div style="margin-bottom: 0.9em; margin-top: 0.5em; text-align: center;"><b>भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा</b><br />
<b>हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा</b><br />
<b>अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का</b><br />
<b>मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा</b></div><br />
<div><span class="Apple-style-span" style="font-family: 'Times New Roman'; font-size: large; line-height: 58px;"> <span class="Apple-style-span" style="background-color: red;">डा कुमार विश्वास को जन्म दिन की शुभकामनाये</span></span></div></div></div></span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large; line-height: 58px;"><br />
</span></div>DR.KUMAR VISHWAShttp://www.blogger.com/profile/13308843247531773452noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1416823357438793983.post-89227563031766880972011-01-25T20:46:00.000-08:002011-01-25T20:46:50.933-08:00वरुण यह मधुमय देश हमारा (आलेख) [डॉ.कुमार विश्वास ]<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="color: #cc0000; text-align: justify;"><i><b><br />
</b></i></div><div style="color: #cc0000; text-align: justify;"><i><b>महीने भर अपुन तो भाई लोगों की चुनाव-चकल्लस में चित्त लगाए रहे। आ पड़ी महानता के नीचे अचकचाए राहुल बाबा, हाशिए पर पड़े-पड़े पैदा हुई कुंठा से फ़नफ़नाए हुए जहरीले हुए वरूण गांधी, मतगणना–पूर्व तक अपने आगत के विषय में मीडिया के अधकचरे सोच से उपजी आश्वस्तिकारक बहसों से आत्म-मुग्ध नरेन्द्र मोदी, मतदाताओं के अचानक बेहद समझदार होने की अप्रत्याशित सूचना से शोचनीय अवस्था में पहुंचे लालू- पासवान, बरसों के संघर्ष से पैदा हुई स्वाभिमानी चमक से लबरेज लाल-सलाम को अंतिम प्रणाम की मुद्रा में पहुंचाती ममता, हीरों और अहंकार से लदी दलितों की दौलतमंद हवाई महारानी, समकालीन राजनीति के निर्लज्जतम पड़ाव पर ठिठकी नवाबी शहर रामपुर में लिखी जा रही शोले-2 की वीभत्स पटकथा। क्या नहीं था भाई? सारे चैनल एक तरफ़, ये सारे खल एक तरफ़। सौ हिन्दी फ़िल्मों के चमत्कारों में भी वो परम मनोरजन नहीं मिलेगा जो इन एक-दो महींनों में इन जोकरों ने पूरी तन्मयता से मंचित किया। ये किसी सस्ते चकलाघर पर हफ़्ता ना पहुंचने से बौखलाई पुलिस के आधी रात के छापे जैसा आदिम नंगई से लिथड़ा कोलाहल था, जिसमें अंदर की भगदड़ जब मतदान और परिणाम की लोकतांत्रिक रोशनी में पहुंची तो ठिठकने की बजाए और बदकलाम व बेहया हो गई। </b></i></div><div style="color: #cc0000; text-align: justify;"><div style="border-bottom: 7px solid rgb(92, 138, 100); border-top: 7px solid rgb(92, 138, 100); float: right; font-size: 10pt; font-weight: normal; line-height: 100%; margin: 10px; padding-bottom: 7px; padding-top: 7px; text-align: justify; width: 130px;"><i><b><span style="font-size: x-small;"><span class="Apple-style-span"><br />
<img border="0" src="http://i447.photobucket.com/albums/qq194/sahityashilpi/DrKumar-1.jpg" style="cursor: pointer; float: left; height: 166px; margin: 0pt 10px 10px 0pt; width: 119px;" width="130" /><span class="Apple-style-span" style="font-weight: bold;"> रचनाकार परिचय:-</span><div><div><br />
</div><div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-weight: bold;"><span class="Apple-style-span"><a href="http://parichay.sahityashilpi.com/2008/09/blog-post_5218.html">डॉ॰ कुमार विश्वास </a></span></span>का नाम किसी भी हिन्दी काव्य-रसिक के लिये अपरिचित नहीं है। देश के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में गिने जाने वाले डॉ॰ कुमार विश्वास के अब तक दो काव्य-संग्रह प्रकाशित हुये हैं जिन्हें पाठकों का अपार स्नेह मिला है। ये अपने काव्य-वाचन के अंदाज़ के लिये सभी के चहेते हैं।</div></div></div></span></span></b></i></div><i><b><br />
</b></i></div><div style="color: #cc0000; text-align: justify;"><i><b>पर हमारा प्रणाम उन भारतीय मतदाताओं को, जो बड़े बिजूका-भाव से इन चिड़ीमारों की चैं-चैं देखते रहे, और बटन भर में इन्हें इनकी औक़ात दिखा दी। परिणाम से पहले मुझे अनेक मिले जो वरूण- नक्षत्र की गरमीं में पल-पल पिघलने जा रही भारतीय राजनीति की नई प्रतिमा के दिवा-स्वप्न देख रहे थे और हम से भी आंख फोड़ कर ऐसी ही कल्पना में खोने का धुआंधार तर्कपूर्ण आग्रह कर रहे थे। डर हम भी रहे थे कि कहीं किसी दिन इन्हीं का सत्य हमें अपने सत्य से एकाकार न करना पड़ जाए। फिर खुद को भरोसे में लिया, और सोचा कि ‘चांडाल की फूंक से अगर औलाद बचती हो, तो ऐसी औलाद मरी भली’। एक सामान्य सी बात भाई लोगों को क्यों समझ में नहीं आती कि इस उप-महाद्वीप में किसी भी प्रकार का अतिवाद गूलर की कपास और दीवार की घास जैसा ही है- ना चरने की, ना भरने की। तभी तो इस चुनाव में मतदाताओं ने बंगाल से गुजरात तक राम वाले और हराम वाले- दोनों को ही नागा सम्प्रदाय में पहुंचा दिया। कुछ को तो यह भाष्य अभी तक समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा कैसे हो गया कि रामस्वरूप बीमार हुए और फ़लस्वरूप मर गए। यही तो इस देश का चमत्कार है भईये। राजस्थान की घाघरा- लूंगड़ी वाली अकेली बालिका वधू एकता कपूर की मेट्रो बहुओं और कालजयी सासों के खटोले दलान में बिछा देने के लिए काफ़ी है। कांग्रेसियों की हालत तो परिणाम के समय बारात में न्यौछावर के सिक्के लूटते बच्चों जैसी हो गई। इतनी इफ़रात की उम्मीद तो चाची के किसी चमचे को नहीं थी। गज़ब का भाग्य ले कर उतरी हैं जम्बू-द्वीप की महारानी। उनके दस-नम्बरी नील पद्म-प्रासाद में बैठे बैठे ही क्षेत्र के क्षेत्र विजित हो जाते हैं। उनके क्षत्रप अपने घाव तक नहीं दिखा पाते कि उधर बाहर वाले जनपथ पर उनका महा-मस्तकाभिषेक शुरू हो जाता है। एक घर की गिरह में पड़े इस अद्भुत देश को देख कर सोचती तो वो भी होंगी, कि कहां आ फंसी? इतनी मनुहार और इतनी चक्रवर्ती चापलूसी से बेचारी चौंक- चौंक जाती हैं। और युवराज- उन पर तो पूरी भारत माता हमारी सारी मौसियों सहित बलिहारी है। अमेठी की एक जनसभा में युवराज ने वहां से अपने लगाव का एक किस्सा सुनाया, कि कैसे उनके बचपन में (शारीरिक) एक जले हुए गांव की एक जली हुई झोंपड़ी में बैठी एक जली-भुनी बुढिया ने उन्हें पास बुलाकर चाकलेट खाने को दी थी। मैं तो कवि आदमी ठहरा (‘आदमी’ सुविधानुसार हटा सकते हैं)। इस किस्से का भावार्थ समझ गया कि बाबा उन दिनों पापा के साथ दौरे पर गए थे, और उन्हीं दिनों जले-कुटे हिन्दुस्तान की जली-भुनी अवस्था में भारत माता ग्रामवासिनी ने उन्हें खानदानी चाकलेट के अहर्निश सेवन का आशीर्वाद प्रदान कर दिया था। ठीक ही है जी- मुगलों के समय से ही हम ‘जगदीश्वरोवा- दिल्लीश्वरोवा’ भजने के आदी हैं। तो बाप भी सही थे, और आप भी सही हैं। दरअसल भारतीय राजनीति का यह दिखावटी युवा-उत्कर्ष उतना ही फ़र्जी है जितना भारतीय राजनीति का पत्नियों, प्रेमिकाओं, विधवाओं, रक्षिताओं और वारांगनाओं की बहुलता से भरा नारी-प्रतिनिधित्व। अब स्वर्गीय राजीव गांधी, स्वर्गीय माधव राव सिंधिया, स्वर्गीय राजेश पायलट, स्वर्गीय जितेन प्रसाद, स्वर्गीय सुनील दत्त और प्रभावी रूप से जीवित मुलायम सिंह, वसुंधरा राजे, शरद पवार, नारायण राणे, मुरली देवड़ा, फ़ारूख अब्दुल्ला के कारण अगर राहुल गांधी, ज्योतिरादिय सिंधिया, सचिन पायलट, जतिन प्रसाद, प्रिया दत्त, अखिलेश यादव, दुष्यंत कुमार, सुप्रिया सूले, नीलेश राणे, मिलिंद देवरा और उमर अब्दुल्ला को हम भारतीय युवा राजनीति का वास्तविक हक़दार बना रहे हैं, तो भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी भी हमें रोहन गावस्कर को सौंप देनी चाहिए। </b></i></div><div style="color: #cc0000; text-align: justify;"><i><b><br />
</b></i></div><div style="color: #cc0000; text-align: justify;"><i><b>हमारा इस बात पर कोई दुराग्रह नहीं कि राजनीति आपका वंशानुगत कर्म है तो आप क्यूं ना करें। जरूर करें। बल्कि जोर-शोर से करें। लेकिन किसी भी बड़ी परीक्षा में ज़रूरी एक न्यूनतम अहर्ता तो प्राप्त कर लें। फिर ज़रा तपें, मंजें, जूझें, गिरें, निकलें, निखरें और तब वहां बैठने की सोचें जहां लाल बहादुर जैसे मर्द और अटल जी जैसे सहज पहुंचे थे। पर आपको तो जुम्मा-जुम्मा चार दिनों में ही सारे दिग्विजयी जनार्दन चुम्मा-चुम्मा करने लगते हैं। उम्मीद है कि नए कांग्रेसी युवराज की मां उन्हें ‘एन्टी- साईकोफैन्सी’ का टीका लगवाएंगी। ताकि नवजात इन बांझ- बुढियाओं की अतिशय बलईयां-धर्मी बीमारियों से बचा रहे।</b></i></div><div style="color: #cc0000; text-align: justify;"><i><b><br />
</b></i></div><div style="color: #cc0000; text-align: justify;"><i><b>पर मजा आ रहा है। रथ वाले इस सब का अरथ पूछ रहे हैं। भगवा-कुल का चिंतन शिविर लगने वाला है। फिर फ़ालतू खोपड़ी खुजा-खुजा कर बखत और बाईट दोनो खराब करेंगे। हारे क्यूं? अरे! इसके लिए इतना हल्कान काहे होना? सब फ़र्जी कारण भी फ़र्जी ही बताएंगे। हारे क्यूं का सीधा- सपाट कारण है- हारे इसलिए भैया कि लोगों ने तुम्हें वोट नहीं दिये, और वो इसलिए जीत गए, कि उन्हें लोगों ने वोट दिये। अब पूछो, कि जीतोगे कैसे? तो भईये, जब बाहरी वोट, आंतरिक खोट और परम लक्ष्य नोट, तीनों से मुक्त हो कर वहीं लौटोगे जहां से चले थे, तो तुम बिना मतदान के ही जीत जाओगे। इसका मतलब ये नहीं कि जो जीते वो इन तीनों बातों से परे है। पर वे जो भी हैं, अपने स्वधर्म पर अडिग है। बरसों से वो स्वार्थी, अवसरवादी, भ्रष्टाचारी, चापलूसों का गुट न होकर गैंग है। संयोग से मुखिया उन्हें वाल्मीकि मिल गया है। तो रामायण मजे से बंच रही है। पर तुम तो निकलते कश्मीर बचाने हो, और पहुंच कंधार जाते हो। राम की खोज में सरयू में गोता लगाते हो और लखनऊ के तट पर कांशीराम लेकर प्रकट होते हो। सार्वजनिक शुचिता और नैतिकता की भागवत बांचते हो, और तुम्हारे कथा-व्यास ही टी वी के कैमरों में चढावे की उल्टी करते पाए जाते हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों पर बड़े बड़े होर्डिंग्स में तुम्हारे ज़मीनी नेता आसमान की ओर उंगली उठाए दिखते हैं, और देश नीचे से निकल जाता है। शहीद जवानों के ताबूतों से दलाली खाने वाले तुम्हारे संगी- साथियों के लिए तो ‘कफ़न-खसोटे’ वाली गाली भी खाली लगती है। जरा सिखाओ अपने नए पीलीभीती खरगोश को, इस देश में तो जयशंकर प्रसाद जी के चंद्रगुप्त की चाणक्य-छाया से तृप्त, यवन सेनापति सेल्यूकस की विदेशी पुत्री कार्नेलिया भी यही गाती है- ‘अरूण यह मधुमय देश हमारा’।</b></i></div><div style="color: #cc0000; text-align: justify;"><i><b><br />
</b></i></div><div style="text-align: justify;"><i style="color: #cc0000;"><b>तो आदरणीय- फ़ादरणीय मजबूत नेता जी, अपने उस नए फ़ार्वर्ड शार्ट-लेग को समझाओ कि राम और रोम को बराबर समझे, और माई और ताई के आंगन वाले झगड़े को दालान का अखाड़ा ना बनाए और वही सब आप भी समझो। तभी अपने नए रंगरूटों को इस बार नगपुर वाले मार्मिक भारतीय गीतों के साथ- साथ यह भी याद करा सकोगे कि- </b></i></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-weight: bold;"><span class="Apple-style-span" style="color: #000066;">‘वरूण, यह मधुमय देश हमारा</span></span></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-weight: bold;"><span class="Apple-style-span" style="color: #000066;">जहां पहुंच अन्जान क्षितिज को मिलता एक किनारा” </span></span></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div>जय जनता जनार्दन!</div>DR.KUMAR VISHWAShttp://www.blogger.com/profile/13308843247531773452noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1416823357438793983.post-73442525863292424572010-12-19T10:51:00.000-08:002010-12-19T10:51:35.638-08:00कविता कोश<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8jeS5VhZhF7mt_az7hHlVh58bf_Gk8_x2FKcUAzyJXXxOxodB0DtzrRuz4g6dXfB3L4hjpMNny8cdM9xWkbXzWNP4As7dLDs8jIpbB3LmetiTLqUdvrfCwcTjJVDb8LMBf3_GK7MJ50U/s1600/dr.sdg.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8jeS5VhZhF7mt_az7hHlVh58bf_Gk8_x2FKcUAzyJXXxOxodB0DtzrRuz4g6dXfB3L4hjpMNny8cdM9xWkbXzWNP4As7dLDs8jIpbB3LmetiTLqUdvrfCwcTjJVDb8LMBf3_GK7MJ50U/s1600/dr.sdg.jpg" /></a></div>कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !<br />
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!<br />
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !<br />
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!<br />
<br />
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !<br />
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!<br />
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !<br />
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!<br />
<br />
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !<br />
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!<br />
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !<br />
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!<br />
<br />
भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!<br />
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!<br />
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!<br />
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!DR.KUMAR VISHWAShttp://www.blogger.com/profile/13308843247531773452noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1416823357438793983.post-70181394407080580782010-12-19T10:49:00.001-08:002010-12-19T10:49:54.976-08:00कविता कोशतुम अगर नही आई गीत गा न पाऊँगा<br />
<br />
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा<br />
<br />
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है<br />
<br />
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है<br />
<br />
<br />
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है<br />
<br />
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है<br />
<br />
रात की उदासी को याद संग खेला है<br />
<br />
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है<br />
<br />
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है<br />
<br />
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है<br />
<br />
<br />
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से<br />
<br />
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से<br />
<br />
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है<br />
<br />
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है<br />
<br />
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है<br />
<br />
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण हैDR.KUMAR VISHWAShttp://www.blogger.com/profile/13308843247531773452noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1416823357438793983.post-69554767480318259812010-12-19T10:32:00.000-08:002010-12-19T10:32:34.331-08:00कविता कोश<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiT44Xmj03V3Or4qU1W1wl-xFi0S4_A6y58-yYtT-E-osc8-ghHUKT5-LRLr5qy62s67-r5uEnTV4z7fn_Mr5Gs3XY0FkpLZ_uNBA378otBaGUOnFUK6fZMIoVXLJV0m9rDaVU4ThESpMo/s1600/1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiT44Xmj03V3Or4qU1W1wl-xFi0S4_A6y58-yYtT-E-osc8-ghHUKT5-LRLr5qy62s67-r5uEnTV4z7fn_Mr5Gs3XY0FkpLZ_uNBA378otBaGUOnFUK6fZMIoVXLJV0m9rDaVU4ThESpMo/s320/1.jpg" width="320" /></a></div>प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये ,<br />
ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाये ,<br />
<br />
घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले ,<br />
अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले ,<br />
<br />
लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाये ,<br />
भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाये ,<br />
<br />
सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में ,<br />
नमी हो लाख मगर फिर भी मुस्कुराएंगे ,<br />
<br />
अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...<br />
<br />
लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही नहीं ,<br />
कह दे सूरज कि रौशनी का तजुर्बा ही नहीं ,<br />
<br />
वो लडाई को भले आर पार ले जाएँ ,<br />
लोहा ले जाएँ वो लोहे की धार ले जाएँ ,<br />
जिसकी चोखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी<br />
उस अदालत में हमें बार बार ले जाएँ<br />
<br />
हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब<br />
हम को कागज पे हरा के भी हार जायेंगे<br />
अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...DR.KUMAR VISHWAShttp://www.blogger.com/profile/13308843247531773452noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1416823357438793983.post-51041964934658236102010-12-19T10:30:00.000-08:002010-12-19T10:30:55.208-08:00कविता कोश<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdL252VXq98dYQkd1wdfd4QM_ckKX6T_P-0ICNyYeJk90mo9s5zZ2rcDSUKvT4rUEpEq_IXLmJKb_SHKD6BS99njGLdMi03ldqW-QNVuZ5BAr55rVLZT7yGZQDJeVtD7EDlo7YCzjsGmc/s1600/0.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdL252VXq98dYQkd1wdfd4QM_ckKX6T_P-0ICNyYeJk90mo9s5zZ2rcDSUKvT4rUEpEq_IXLmJKb_SHKD6BS99njGLdMi03ldqW-QNVuZ5BAr55rVLZT7yGZQDJeVtD7EDlo7YCzjsGmc/s320/0.jpg" width="320" /></a></div>ओ कल्पव्रक्ष की सोनजुही!<br />
ओ अमलताश की अमलकली!<br />
धरती के आतप से जलते..<br />
मन पर छाई निर्मल बदली..<br />
मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा|<br />
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||<br />
<br />
तुम कल्पव्रक्ष का फूल और<br />
मैं धरती का अदना गायक<br />
तुम जीवन के उपभोग योग्य<br />
मैं नहीं स्वयं अपने लायक<br />
तुम नहीं अधूरी गजल शुभे<br />
तुम शाम गान सी पावन हो<br />
हिम शिखरों पर सहसा कौंधी<br />
बिजुरी सी तुम मनभावन हो.<br />
इसलिये व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा|<br />
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||<br />
<br />
तुम जिस शय्या पर शयन करो<br />
वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो<br />
जिस आँगन की हो मौलश्री<br />
वह आँगन क्या वृन्दावन हो<br />
जिन अधरों का चुम्बन पाओ<br />
वे अधर नहीं गंगातट हों<br />
जिसकी छाया बन साथ रहो<br />
वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो<br />
पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा|<br />
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||<br />
<br />
मै तुमको चाँद सितारों का<br />
सौंपू उपहार भला कैसे<br />
मैं यायावर बंजारा साधू<br />
सुर श्रृंगार भला कैसे<br />
मैन जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ शुभे<br />
बारूद बिछी धरती पर कर लूँ<br />
दो पल प्यार भला कैसे<br />
इसलिये विवश हर आँसू को सत्कार नहीं दे पाऊँगा|<br />
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा||DR.KUMAR VISHWAShttp://www.blogger.com/profile/13308843247531773452noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1416823357438793983.post-51131616932601446512010-12-19T10:28:00.000-08:002010-12-19T10:28:54.335-08:00डॉ.कुमार विश्वास<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXp5kiLl3jKz6qMBqNMNh3EpugsK478IKzXD2EPekqt4Glb2fktA5D09gxMAFTR3gswrHwjPceoT4GucjG_PzqAWuBHxdIM_AFkDulOHOJ7jHxLzbbNUMTHLWRvuD5iAU6hsKBPg_gjFU/s1600/dr.kumar-vishwas_16.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXp5kiLl3jKz6qMBqNMNh3EpugsK478IKzXD2EPekqt4Glb2fktA5D09gxMAFTR3gswrHwjPceoT4GucjG_PzqAWuBHxdIM_AFkDulOHOJ7jHxLzbbNUMTHLWRvuD5iAU6hsKBPg_gjFU/s320/dr.kumar-vishwas_16.jpg" width="320" /></a></div><span style="font-size: large;"><u><i><b><span style="color: #cc0000;">प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा</span></b></i></u></span><br />
<br />
कुमार विश्वास का जन्म 10 फ़रवरी (वसंत पंचमी), 1970 को पिअखुआ (ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। चार भाईयों और एक बहन में सबसे छोटे कुमार विश्वास ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा लाला गंगा सहाय स्कूल, पिलखुआ में प्राप्त की। उनके पिता डा चन्द्रपाल शर्मा आर एस एस डिग्री कालेज (चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ से सम्बद्ध), पिलखुआ में प्रवक्ता रहे। उनकी माता श्रीमती रमा शर्मा गृहिणी हैं। राजपूताना रेजिमेंट इंटर कालेज से बारहवीं में उनके उत्तीर्ण होने के बाद उनके पिता उन्हें इंजीनियर (अभियंता) बनाना चाहते थे। डा कुमार विश्वास का मन मशीनों की पढाई में नहीं रमा, और उन्होंने बीच में ही वह पढाई छोड़ दी। साहित्य के क्षेत्र में आगे बढने के ख्याल से उन्होंने स्नातक और फिर हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर किया, जिसमें उन्होंने स्वर्ण-पदक प्राप्त किया। तत्प्श्चात उन्होंने "कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना" विषय पर पीएचडी प्राप्त किया। उनके इस शोध-कार्य को 2001 में पुरस्कृत भी किया गया।<br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large;"><i><b><span style="color: red;">कैरियर</span></b></i></span><br />
<br />
डा कुमार विश्वास ने अपना कैरियर राजस्थान में प्रवक्ता के रूप में 1994 मे शुरू किया। तत्पश्वात वो अब तक महाविद्यालयों में अध्यापन कार्य कर रहे हैं। इसके साथ ही डा विश्वास हिन्दी कविता मंच के सबसे व्यस्ततम कवियों में से हैं। उन्होंने अब तक हज़ारों कवि-सम्मेलनों में कविता पाठ किया है। साथ ही वह कई पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते हैं। डा विश्वास मंच के कवि होने के साथ साथ हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के गीतकार भी हैं। उनके द्वार लिखे गीत अगले कुछ दिनों में फ़िल्मों में दिखाई पड़ेगी। उन्होंने आदित्य दत्त की फ़िल्म 'चाय-गरम' में अभिनय भी किया है।<br />
कार्य एवम उपलब्धियां<br />
<br />
विभिन्न पत्रिकाओं में नियमित रूप से छपने के अलावा डा कुमार विश्वास की दो पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं- 'इक पगली लड़की के बिन' (1996) और 'कोई दीवाना कहता है' (2007 और 2010 दो संस्करण में) [1]. विख्यात लेखक स्वर्गीय धर्मवीर भारती ने डा विश्वास को इस पीढी का सबसे ज़्यादा सम्भावनाओं वाला कवि कहा है। प्रथम श्रेणी के हिन्दी गीतकार 'नीरज' जी ने उन्हें 'निशा-नियामक' की संज्ञा दी है। मशहूर हास्य कवि डा सुरेन्द्र शर्मा ने उन्हें इस पीढी का एकमात्र आई एस ओ:2006 कवि कहा है।<br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large;"><i><b><span style="color: red;">मंच</span></b></i></span><br />
कवि-सम्मेलनों और मुशायरों के क्षेत्र में भी डा विश्वास एक अग्रणी कवि हैं। वो अब तक हज़ारों कवि सम्मेलनों और मुशायरों में कविता-पाठ और संचालन कर चुके हैं। देश के सैकड़ों प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाओं में उनके एकल कार्यक्रम होते रहे हैं। इनमें आई आई टी खड़गपुर, आई आई टी बी एच यू, आई एस एम धनबाद, आई आई टी रूड़की[2], आई आई टी भुवनेश्वर [3], आई आई एम लखनऊ [4], एन आई टी जलंधर [5], एन आई टी त्रिचि [6], इत्यादि कई संस्थान शामिल हैं। कई कार्पोरेट कंपनियों में भी डा विश्वास को अक्सर कविता-पाठ के लिए बुलाया जाता है।<br />
<br />
भारत के सैकड़ों छोटे-बड़े शहरों में कविता पाठ करने के अलावा उन्होंने कई अन्य देशों में भी अपनी काव्य-प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। इनमें अमेरिका [7], दुबई [8], मस्कट, अबू धाबी और नेपाल जैसे देश शामिल हैं।<br />
<span style="font-size: large;"><i><b><span style="color: red;">पुरस्कार</span></b></i></span><br />
<br />
1) डा कुंवर बेचैन काव्य-सम्मान एवम पुरस्कार समिति द्वारा 1994 में 'काव्य-कुमार पुरस्कार' 2) साहित्य भारती, उन्नाव द्वारा 2004 में 'डा सुमन अलंकरण' 3)हिन्दी-उर्दू अवार्ड अकादमी द्वारा 2006 में 'साहित्य-श्री'[9]<br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large;"><i><b><span style="color: red;">अन्य सूचनाएं</span></b></i></span><br />
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1) डा कुमार विश्वास हिन्दी मंच के एकमात्र ऐसे कवि हैं, जिनकी कविता (बिना किसी वाद्य यंत्र के, अपने स्वर में) देश के प्राय: सभी बड़े मोबाईल आपरेटरों के कालर बैक ट्यून (काल करने वाले को सुनाई देने वाला ट्यून) में शामिल है।[10]<br />
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2)डा विश्वास इंटरनेट पर सबसे लोकप्रिय कवि हैं। आर्कुट [11] और फ़ेसबुक [12] पर उनका प्रशंसक परिवार अन्य किसी भी कवि के प्रशंसक परिवार से बड़ा है।<br />
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3) वीडियो वेबसाईट यू-ट्यूब पर डा विश्वास की एक ही वीडियो को पांच लाख से अधिक बार देखा गया है, जो किसी भी अन्य कवि के वीडियो से कई गुना ज़्यादा है।[13]DR.KUMAR VISHWAShttp://www.blogger.com/profile/13308843247531773452noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1416823357438793983.post-32368403959711564982010-12-19T10:22:00.000-08:002010-12-19T10:22:53.698-08:00यह blog ..........................................यह ब्लॉग इस सदी के महान कवि और रचनाकार डॉ.कुमार विश्वास को पूर्णतः समर्पित है.<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixRw-FNf2vlEXT3mKQiyhycloZ3dcsqgsrL0XfxG8BCUV4kql4XUMpdcrtjP1xrudbjzAH0ef2If1LEalMoLoeGJ3Wt-7w_BYndrz2BMHs2218Q7f2IO-BD_LjCYFVxx0jbwpXB7s970I/s1600/157936_58762883453_6312364_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixRw-FNf2vlEXT3mKQiyhycloZ3dcsqgsrL0XfxG8BCUV4kql4XUMpdcrtjP1xrudbjzAH0ef2If1LEalMoLoeGJ3Wt-7w_BYndrz2BMHs2218Q7f2IO-BD_LjCYFVxx0jbwpXB7s970I/s1600/157936_58762883453_6312364_n.jpg" /></a></div>इस ब्लॉग के माध्यम से मै डॉ.कुमार विश्वास की लोकप्रियता को उचाईयों तक ले जाना चाहता हूँ.जो व्यक्ति उनके बारे में नहीं जानते उन तक इस महान आत्मा का सन्देश पहुँचाने का यह एक छोटा सा प्रयास है. उनके बारे में ज्यादा जानने के लिए अगला ब्लॉग पढ़ें.DR.KUMAR VISHWAShttp://www.blogger.com/profile/13308843247531773452noreply@blogger.com0